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Saturday, April 27, 2024

साधना एवं राष्ट्र रक्षा शिविर के उद्घाटन सत्र में पुरी शंकराचार्यजी का हिन्दू राष्ट्र निर्माण पर संदेश

 साधना एवं राष्ट्र रक्षा शिविर के उद्घाटन सत्र में पुरी शंकराचार्यजी का हिन्दू राष्ट्र निर्माण पर संदेश




अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट 


सीकर - ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय पुरीपीठाधीश्वर एवं हिन्दू राष्ट्र प्रणेता अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगदुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज के सानिध्य में सीकर राजस्थान के खाटू श्यामजी में त्रिदिवसीय पच्चीसवां साधना एवं राष्ट्र रक्षा शिविर आयोजित है। उद्घाटन सत्र में धर्मसंघ पीठपरिषद्, आदित्य वाहिनी - आनन्द वाहिनी संगठन के सदस्यों एवं आध्यात्मिक प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुये पुरी शंकराचार्यजी उद्घृत करते हैं कि यह भारत विश्व का हृदय है, इसके अस्तित्व और आदर्श की रक्षा करने का दायित्व हमको - आपको प्राप्त है। यह साक्षात जगदीश्वर को अवतीर्ण करने वाली पवित्र भूमि है, यहाँ साक्षात जगदेश्वरी ( भगवती ) भी अवतीर्ण होती हैं। कारक कोटि के मनीषियों की यह तपस्थली है। हमें विकास के व्यामोह में हमारे अस्तित्व और आदर्श में कुंठा ना उत्पन्न हो जाये इसका ध्यान रखना है। हमें ध्यान रखना है कि पर्यावरण के अनुकूल विकास क्रियान्वित हो। वेदादि शास्त्रों के विधिवत अनुशीलन से यह तथ्य उद्भाषित है कि सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवा परायण, स्वस्थ्य, सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना राजनीति है। राजनीति को ही राजधर्म कहते हैं, यही दंडनीति, अर्थनीति और क्षात्रधर्म भी कहते हैं, ये सभी पर्यायवाची हैं। शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवा के प्रकल्प सदा संतुलित रहे, मातृशक्तियों का शील सुरक्षित रहे बिना परिवार नियोजन या गर्भपात के जनसंख्या संतुलित रहे, इसकी स्वस्थ विधा सनातन वर्णाश्रम व्यवस्था है। इससे परिपालन से सबकी जीविका जन्म से सुरक्षित तथा जीवन दुर्व्यसन मुक्त हो सकता है। विदेशों में परम्परा प्राप्त वर्णाश्रम व्यवस्था के अभाव में वैकल्पिक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सेवक वर्ग की आवश्यकता होती है, परन्तु इस वैकल्पिक व्यवस्था बनाने में अधिक समय तथा संपत्ति की आवश्यकता होती है तथा संस्कार का आधान नहीं होने से संतुलन बिगड़ता है। परम्परा प्राप्त वर्णाश्रम व्यवस्था का विलोप ना हो,इसमें विकृति न उत्पन्न हो इसके लिये कटिबद्धता की आवश्यकता है। सुनियोजित तरीके से स्वतंत्र भारत में धर्म के प्रति हीन बुद्धि उत्पन्न की गई जबकि वेदों का तात्पर्य धर्म है इसमें ब्रह्म सन्निहित है। धर्म भव्य है अतः इसका परिज्ञान आवश्यक है। जो धारक हो, उद्धारक हो वह धर्म है। दर्शन, विज्ञान और व्यवहारिक दृष्टिकोण के आधार पर पृथ्वी / जल / अग्नि / वायु / आकाश /अव्यक्त प्रकृति का नाम धर्म है। परमात्व तत्त्व, ब्रह्म तत्त्व, आत्म तत्त्व सिद्ध कोटि के धर्म हैं। परमात्मा नित्य है, सत्य है, यह काल के द्वारा कवलित नहीं होता। इस साधना और राष्ट्र रक्षा के त्रिदिवसीय शिविर के विभिन्न सत्रों में धर्म, अध्यात्म और राष्ट्र विषय पर साधकों को पुरी शंकराचार्यजी के द्वारा मार्गदर्शन मिलेगा। प्रतिदिन सवा घंटे की उपासना से प्राप्त स्व ऊर्जा का समुचित उपयोग सनातन संस्कृति संरक्षण, सनातन मान बिन्दुओं की रक्षा तथा रामराज्य समन्वित हिन्दू राष्ट्र निर्माण में साधकगण अपने अपने क्षेत्रों में मठ मन्दिरों को केन्द्र बनाकर उसको समृद्ध, स्वावलम्बी करने की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे। चयन, प्रशिक्षण और नियोजन के मूलमंत्र से संगठन सक्रिय और गतिशील हो सकेगा।

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