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Monday, December 30, 2024

पहुना साहित्यकारों का हुआ सम्मान कवियों ने पढ़ी कविताएं

 पहुना साहित्यकारों का हुआ सम्मान

कवियों ने पढ़ी कविताएं




गंडई -पंडरिया - साहित्यकार प्रकृति और परिवेश को जानने - समझने के लिए यात्राएं करता है,ताकि अपने अनुभवों को अपनी रचनाओं में शामिल कर सके।इसी सिलसिले में 28 दिसंबर को बिल्हा बिलासपुर के वरिष्ठ कवि, साहित्यकार, चंदैनी गोंदा के गीतकार केदार दुबे व चकरभाठा बिलासपुर के आकाशवाणी लोक गायक,कवि जगदीप कुलदीप का आगमन हुआ।उन्होंने गंडई के कलचुरिकालीन प्राचीन शिव मंदिर का दर्शन कर अवलोकन किया।




 पहुना साहित्यकारों के सम्मान में कवि गोष्ठी का आयोजन डॉ.पीसी लाल यादव के निवास में संपन्न हुआ। दोनों पहुना का आत्मीय सम्मान गंडई के साहित्यकारों द्वारा पुष्पगुच्छ, शाल व पुस्तकें भेंट कर किया गया। तत्पश्चात कवि गोष्ठी हुई। कविता पाठ का शुभारंभ तेंदूभाठा के युवा कवि मुकेश साहू ने किया। उन्होंने गरीब की पीड़ा को इन शब्दों में व्यक्त की "मोरो बर कुछु बनवा देते मालिक,मोरो जीव कल्पत हे।" नवोदित कवयित्री श्रद्धा यादव ने मनुष्य जीवन की तुलना नदी के घाट  से की और कहा -"मैं उस घाट के जैसे हूँ, जहाँ पड़ते हैं पदचाप।शाम ढलते ही लोग वापस लौट जाते हैं।मैं फिर अकेली सुनसान चुपचाप।" डोंहड़ी साहित्य समिति गंडई के अध्यक्ष डॉ.कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू  ने छत्तीसगढ़ी में व्यंग्य कविता प्रस्तुत कर समाज का सच " बात के बत्तू, काम के टरकू।फोकट के बतियाही।असल काम जब घर म आही,कोन कुकुर पतियाही?" कहकर सामने रखा। गंडई के युवा कवि शशांक यादव ने छत्तीसगढ़ के भांचा राम पर केंद्रित कविता - "अइ सन भगमानी हमन,जग मा हमर नाम जी। जेकर नता मा सऊंहे देवता , भाँचा लागे राम जी "पढ़ी। तेंदूभाठा के वरिष्ठ कवि और मधुर गीतकार बोधन सिंह चंदेल ने छत्तीसगढ़ी गीत की बानगी देकर वातावरण को गीत मया बना दिया।गीत के बोल थे -"रात अंधियारी काटबो चलो जिनगी के, आओ चलो गीत नवा गाबो।दुख ला बिसरा के बीते काली के, नवां सुरुज ल माथ हम नवाबो।" समकालीन कविता की चर्चित पत्रिका "मुक्तिबोध" के संपादक व शिक्षक डॉ. मांघी लाल यादव ने नयी कविता पढ़ी -"कई कोस ले बरफ जमे हे/झील में/चांद मोर अपन आय।"

गंडई के ही व्यंग्य के वरिष्ठ कवि लच्छू यादव ने धारदार व्यंग्य प्रस्तुत करते हुए कहा -"फोरएट के सेती संगी,खेत खार हे साफ।सरकार के गर मा फांसी डारव,करजा करही माफ।" लोक गायक द्वारिका यादव ने अपने सुमधुर स्वरों में ददरिया लोक गीत " कोठा दुवारी, लगा ले तुमा का गा,दाई भर ला जगा ले,ले लेही चूमा का गा?" गाकर रस घोल दिया। पहुना कवि व लोक गायक जगदीश कुलदीप ने भी अपनी तान छेड़ी और " मनमीत मया के गीत गाना हे। मनखे भीतर मनखेपन जगाना हे।" गाकर सबको भाव विभोर कर दिया। सम्मानित वरिष्ठ कवि केदार दुबे ने शब्दों से नए साल का स्वागत करते हुए कई गीत प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।एक बानगी देखिए -"जइसे फुलय सोन जूही,हुलास मन के लागत हे। नवां किरन तुंहर सुआगत हे।" अंत में डॉ.पीसी लाल यादव एक ने समसामयिक रचना का पाठ करते हुए कहा -"रुखराई में ओरमे टोंटा दिखथे। खलखलावत मुंडा लोटा दिखथे।" फिर उन्होंने उपस्थित सभी  साहित्यकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।इस तरह एक लंबे अंतराल के बाद गंडई में सार्थक कवि गोष्ठी संपन्न हुई।

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