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Friday, May 16, 2025

थरथर-थरथर काँपिस धरती, होय लगिस भारी संग्राम। योद्धा बालक ब्राम्हन बेटा,परसु राम जेखर हे नाम।। वो जमदग्नि बाप के बेटा, मात रेणुका के सुत आय। खेल-खेल मा जंगल भीतर,शेर पकड़ के वोहर लाय।।

  आल्हा-छंद 

परसु राम जेखर हे नाम 

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थरथर-थरथर काँपिस धरती, होय लगिस भारी संग्राम।

योद्धा बालक ब्राम्हन बेटा,परसु राम जेखर हे नाम।।


वो जमदग्नि बाप के बेटा, मात रेणुका के सुत आय।

खेल-खेल मा जंगल भीतर,शेर पकड़ के वोहर लाय।।


देखय नान्हेपन मा वोहा, सहसबाहु के अत्याचार।

कभू जलावय उखर झोपड़ी, साधु-संत अउ ऋषि ला मार।।


कभू बाप के दुख ला देखय, माता के आँसू के धार।

का देखत हस कहे पिता से, ये पापी ला जल्दी मार ।।


माफी देवय झन पापी ला, परसु राम के जी भन्नाय।

अपन पिता के हृदय देख के, मन ही मन वोहा बगियाय।।


धधकत आग धरे छाती मा, पहुँचिस वो भोले दरबार।

बारह साल ले करिस साधना, बर्फ कुंड के सहिगे मार।।


कठिन तपस्या देख पिघलगे, अवघट दानी दिस वरदान।

सदा अमर हो तोरे काया, अक्षय फरसा करिस प्रदान।।


धरके फरसा गरजय बेटा, बाप तीर वो आइस आज।

शंकर भोले के दिल जीते,बाप कहे मोला हे नाज।।


असली बेटा तैं होबे ता, काट तोर माता के घेंच।

परसु राम जी परसु उठाके, माता के मुड़ देइस केंच।।


होगे भारी कठिन परीक्षा,परसु राम जी होगे पास।

मान पिता के आज्ञा वोहा, चार पुत्र मा बनगे खास।।


खुशी पिता जी बोलय बेटा, ले-ले मुँहमाँगा वरदान।

झट ले माँगय परसु राम जी, लौटा दव माता के प्रान।।


माता के ममता वो पाके,करिस प्रतिज्ञा भुजा उठाय।

ताल तलैया सबो सुखागे, वन पर्वत सब जरे भुँजाय।।


सहसबाहु ला जब ललकारे, पर्वत गिरय धुरी समान।

काँपय धरती थरथर-थरथर,भैरा परगे सबके कान।


कुदा-कुदा के काटय वोला, कटगे वोखर हाँथ हजार।

छाती मा बइठे पापी के, बहिस लहू के नँदियाँ धार।।


पापी मनके होय विरोधी, परशुराम के फरसा लाल।

ये धरती ले बैरी मनला, काट-काट के देवय काल।


"शर्माबाबू" परसु राम जी, सबला एके पाठ पढ़ाय।

कायर बनके तुम झन जीयव,चाहे जिनगी तुँहर सिराय।।


छंदकार एवं लेखक (छत्तीसगढ़ी भाषा)

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

 कटंगी गंडई

जिला केसीजी

छत्तीसगढ़

९९७७५३३३७५

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