हर बछर सही इहु बछर हमर गाँव बनसाँकरा म भगवती साहू के घर हमर पारा के लइका मन भोजली बोंए रिहिस।
भोजली हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति ले जुड़े परब आय, एला कुँवारी नोनी मन के द्वारा खेती- किसानी अउ गाँव के सुख शांति बर बोंए जथे ।
भोजली ल टोपली म बोंथे, जेमा माटी, छेना के खरसी, राख अउ पेरौसी ल टोपली म भरथे ।
बिरही फिलोए के नेंग बर सात प्रकार के बिजहा तिली, जवां, राहेर, मसूर, कोदो, चना अउ जादा मात्रा म गेहुँ के उपयोग करथे ।
भोजली ल 7 दिन बर बोंथे, जेन ह बछर म दु बार सावन अउ भादो म बोंए जथे ।
सावन के भोजली राखी के बिहान दिन ठंडा (विसर्जन) अउ भादो के भोजली पोरा के दिन ठंडा (विसर्जन) होथे ।
मितानी परम्परा म भोजली ल एक दूसर के कान म खोंच के मितान, मितानिन घलो बदथे ।
बिरही बोंए के बाद ले विसर्जन तक रोज भोजली दाई के सेवा भाव सँग सबो झन सुग्घर भोजली गीत गाथे, जेमा सबले जादा प्रचलन म "देवी गंगा, देवी गंगा, लहरा तुरंगा, हमर भोजली दाई के भींजे आठो अंगा" ल गाथे ।
CNI NEWS सिमगा से ओंकार साहू की रिपोर्ट
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