राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस आज,आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य यही है कि, लोग आयुर्वेद को केवल विकल्प नहीं ,बल्कि मुख्यधारा चिकित्सा के रूप में अपनाएं ।
सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी।
भारत सरकार ने आयुर्वेद को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। अब से हर साल 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। सदियों से आयुर्वेद दिवस
धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) के दिन मनाया जाता है। सरकार का मानना है कि तिथि यानि दिनांक तय होने से आयुर्वेद दिवस को एक सार्वभौमिक कैलेंडर पर पहचान मिलेगी और दुनिया भर में इसका व्यापक रूप से आयोजन संभव हो सकेगा आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि.
केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि यह व्यक्ति और प्रकृति के बीच संतुलन और सामंजस्य का विज्ञान है। यह हमारे सामूहिक संकल्प को दर्शाता है कि आयुर्वेद के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य और स्वस्थ ग्रह की दिशा में काम किया जाएगा।
मंत्रालय के अनुसार, अगले दस वर्षों में धनतेरस की तारीख 15 अक्तूबर से 12 नवंबर के बीच बदलती रहेगी, जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे एकसाथ मनाना मुश्किल हो जाता। इसी वजह मंत्रालय ने एक समिति बनाई, जिसने चार संभावित तारीखें सुझाईं। इनमें से 23 सितंबर को सबसे उपयुक्त माना गया। इस दिन, दिन और रात लगभग बराबर होते हैं। मंत्रालय ने बताया कि यह खगोलीय घटना प्राकृतिक संतुलन का प्रतीक है, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांत 'मन, शरीर और आत्मा के संतुलन' से मेल खाती है।
आयुर्वेद दिवस के अवसर पर देशभर में और विदेशों में भी कई आयोजन होते हैं। जैसे स्वास्थ्य शिविर और जागरूकता अभियान, सेमिनार और कार्यशालाएं जिनमें विशेषज्ञ आयुर्वेद के बारे में जानकारी साझा करते हैं। प्रदर्शनियां और पब्लिक अवेयरनेस प्रोग्राम जिनमें आयुर्वेदिक उत्पाद और उपचार दिखाए जाते हैं। स्कूल, कॉलेज और मेडिकल संस्थानों में विशेष कार्यक्रम, जिससे युवा पीढ़ी आयुर्वेद को समझ सके।
आयुर्वेद दिवस का महत्व-
आज जब पूरी दुनिया प्राकृतिक चिकित्सा की ओर लौट रही है, ऐसे में भारत का यह प्रयास बेहद जरूरी और समय के अनुकूल है। आयुर्वेद न केवल उपचार की एक पद्धति है, बल्कि यह जीवनशैली, खान-पान और मानसिक संतुलन पर भी जोर देता है। आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य यही है कि लोग आयुर्वेद को केवल विकल्प नहीं, बल्कि मुख्यधारा की चिकित्सा के रूप में अपनाएं।
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