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Monday, September 22, 2025

शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्रि

 शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्रि



अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट 


रायपुर - नवरात्रि एक हिन्दू महापर्व है जो वर्ष में चार बार पौष , चैत्र , आषाढ़ और आश्विन माह में आता है। लेकिन साल में दो बार चैत्र और आश्विन माह में ही खास तौर से नवरात्र की पूजा की जाती है। शरद ऋतु के आश्विन माह में आने के कारण इन्हें शारदीय नवरात्रि का नाम दिया गया है। शक्ति की आराधना उपासना का शारदीय नवरात्रि हिन्दूओं की विशेष आस्था का पर्व है , जो देश के विभिन्न हिस्सों में अलग - अलग तरीकों से मनाया जाता है। इस दौरान लोग देवी के अलग अलग नौ रूपों मां शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि महागौरी और सिद्धिदात्रि की पूजा-अर्चना , आराधना कर उनसे सुख , समृद्ध की आशीर्वाद मॉगते हैं। शक्ति उपासना के पर्व शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा नौ दिनों के लिये पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों की साधना से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। लेकिन इस बार एक तिथि में वृद्धि होने के कारण नवरात्रि दस दिनों की होगी। महालया के दिन जब पितृगण धरती से लौटते हैं तब मां दुर्गा अपने परिवार और गणों के साथ पृथ्वी पर आती हैं। जिस दिन नवरात्र का आरंभ होता है उस दिन के हिसाब से माता हर बार अलग-अलग वाहनों से आती हैं। माता का अलग-अलग वाहनों से आना भविष्य के लिये संकेत भी होता है जिससे पता चलता है कि आने वाला साल कैसा रहेगा। इस साल माता का वाहन हाथी होगा क्योंकि नवरात्रि का आरंभ सोमवार से हो रहा है। इस विषय में देवी भागवत पुराण में इस प्रकार लिखा गया है कि रविवार और सोमवार को नवरात्रि आरंभ होने पर माता हाथी पर चढकर आती हैं जिससे खूब अच्छी वर्षा होती है , खेती अच्छी होगी और देश में अन्न धन का भंडार होगा। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा के ऊर्जा और शक्ति की उपासना का महत्व होता है। फिर नवरात्रि के चौथे , पांचवें और छठवे दिन पर सुख और समृद्ध प्रदान करने वाले देवी लक्ष्मी , सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी सरस्वती की उपासना होती है। अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन कर माता की विदाई की जाती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन माह शुक्ल पक्ष से शुरू होकर पूरे नौ दिनों तक चलती हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्रि सोमवार 22 सितंबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। इस विशेष तिथि पर उत्तराफाल्गुनी और हस्त नक्षत्र का संयोग है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से 01 अक्टूबर तक है , वहीं 02 अक्टूबर को दशहरा यानि विजयादशमी है। नवरात्रि के दिनों में रोजाना देवी मां को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाना चाहिये। साथ ही देवी मां को लाल रंग के पुष्प अर्पित करना शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व की शुरुआत तब हुईं जब मां दुर्ग के द्वारा राक्षस महिषासुर का वध कर दिया गया। दोनों के बीच नौ दिनों तक लड़ाई चली और दसवें दिन मां दर्गा ने राक्षस का वध कर दिया था। उसी क्त से नवरात्रि का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा में तीन चीजों का विशेष महत्व है इसलिये इन तीन चीजों के बारे में विशेष ध्यान रखना चाहिये क्योंकि नवरात्र में इन तीन चीजों के बिना मॉ दर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। मॉँ की पूजा में लाल रंग का विशेष महत्व है , नवरात्र की पूजा में इस रंग सर्वधिक प्रयोग होता है क्योंकि मां दुर्गा को लाल रंग अधिक पसंद है। इसलिये घटस्थापना और माता स्थापित करने के लिये लाल रंग के वस्त्र से आसन सजाया जाता है , इसके साथ ही लाल चुनरी और कुमकुम का टीका लगाया जाता है। नवरात्रि पूजन आरंभ करने से पूर्व मां दुर्गा को लाल रंग की चुनरी चढ़ाई जाती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि मां दु्र्गा को कभी भी रिक्त चुनरी नहीं चढ़ानी चाहिये , चुनरी के साथ सिंदूर यानि श्रृंगार की सामाग्री , मेवा , फल , मिष्ठान , नारियल आदि भी चढ़ाने चाहिये। नवरात्रि में अखंड ज्योति का विशेष महत्व है। अखंड ज्योति से घर में सकरात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होती है। अखंड ज्योति को जलाने से पूर्ण स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिये ज्योति जलाने के लिये पीतल या मिट्टी के बने दीपक का प्रयोग करना चाहिये , गाय के घी से इस अखंड ज्योति को जलाया जाता है।


आज होगी शैलपुत्री की आराधना


नवरात्रि से जुड़े कई रीति-रिवाजों के साथ कलश स्थापना का विशेष महत्व है। नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है जो शक्ति की देवी का आह्वान है। आज नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा की पूजा आराधना "शैलपुत्री" के रूप में होगी। पर्वतराज हिमालय के घर में पत्र के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। इनका रुप सौम्य और शांत है , सफेद वस्त्र धारण की हुई इन देवी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है। माना जाता है कि देवी शैलपुत्र की आराधना करने से तामसिक तत्वों से मुक्ति मिलती है। माता शैलपुत्री का नाम लेने से घर में पवित्रता आती है। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है , वहीं पापियों का विनाश करता है। बायें हाथ में सुशोभित कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है। मां को सफेद वस्तु अतिप्रिय है। नवरात्र के पहले दिन मां को सफेद वस्त्र और सफेद फूल और सफेद भोग चढ़ाने के साथ ही सफेद बर्फी का भी भोग लगाना चाहिये। मां के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है। मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का धी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है। इनकी उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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