नवरात्र विशेष
प्रथम स्वरूप शैलपुत्री -आज से नवरात्र शुरु सबसे पहला नाम शैलपुत्री का है।
सी एन आइ न्यूज -पुरुषोत्तम जोशी। पहले नवरात्र पर पूजा विधि में सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, फिर कलश स्थापना करें, जिसमें मिट्टी के पात्र में सप्तधान्य (सात अनाज) बोएं और मिट्टी का कलश स्थापित करें। कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्के और आम के पत्ते डालकर ऊपर नारियल रखें। इसके बाद देवी शैलपुत्री की मूर्ति स्थापित करें, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल व वस्त्र अर्पित करें, घी का दीपक जलाएं, मंत्र जाप करें (जैसे "ॐ शैलपुत्र्यै नम:")। अंत में दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ करें और आरती उतारें।
पूजा की सामग्री
मिट्टी का पात्र और सप्तधान्य कलश गंगाजल, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते नारियल
मां शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर कुमकुम, अक्षत, सफेद या लाल फूल धूप, दीप (घी का दीपक) फल और मिठाई (जैसे गाय के दूध की खीर)
दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती पूजा विधि
स्नान और शुद्धिकरण: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। कलश स्थापना: घर के मंदिर या पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। मिट्टी के पात्र में सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) बोएं और उसके ऊपर जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश में सुपारी, सिक्के और आम के पत्ते डालें।
देवी की स्थापना: कलश के ऊपर नारियल रखें। फिर चौकी पर देवी शैलपुत्री की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
देवी को अर्पित करें: देवी को कुमकुम, अक्षत, फूल (गुड़हल और सफेद कनेर के फूल प्रिय हैं), और वस्त्र अर्पित करें।
दीपक प्रज्वलित करें: देवी के सामने घी का दीपक जलाएं।
मंत्र जाप और पाठ: माँ शैलपुत्री के मंत्र "ॐ शैलपुत्र्यै नम:" या "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम" का जाप करें। आप चाहें तो दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं।
भोग लगाएं: माता को फल, मिठाई या गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
आरती और समापन: पूजा के अंत में कपूर या घी का दीपक जलाकर आरती करें और अंत में शंख बजाकर पूजा का समापन करें।
पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जिनकी कथा के अनुसार वे प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं. सती अपने पिता के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान को सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. इसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं.
मां शैलपुत्री की कथा
पूर्व जन्म में सती: प्राचीन कथाओं के अनुसार, देवी शैलपुत्री पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं.
दक्ष का यज्ञ: प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. अपनी पुत्री और दामाद को आमंत्रित न करना शिव का अपमान था, जिसे दक्ष ने अपनी योजना में शामिल किया था.
सती का जाना: सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल थीं, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें बिना निमंत्रण के जाने से रोका. सती हठ कर बैठीं और शिव के आग्रह के बावजूद वहां गईं.
अनादर और अपमान: यज्ञ में पहुंचने पर, सती को किसी ने सम्मान नहीं दिया. उनके पिता दक्ष ने भरे यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया. आत्मदाह: अपने पति के अपमान को सह न पाने के कारण सती ने क्रोध में आकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए.
शैलपुत्री के रूप में पुनर्जन्म: इसके बाद, देवी सती ने ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया. पर्वत की पुत्री होने के कारण ही उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा. पहला स्वरूप: नवरात्रि के नौ दिनों में, पहले दिन मां दुर्गा के इसी प्रथम स्वरूप, यानी शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है।
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