रोहिणी व्रत आज-इस व्रत की जैन और हिंदू धर्म में बहुत महत्व है ।
सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी।
रोहिणी व्रत जैन धर्म का अति महत्वपूर्ण व्रत हैं। इस व्रत के मौके पर भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन चंद्रदेव की आराधना करने का भी नियम है। दरअसल, इस दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर जाता है जिसके कारण ही इस दिन को ‘चंद्र पूजा’ रूप में जाना जाता है। द्रिक पंचांग की मानें तो 7 नवंबर को रोहिणी व्रत करने का विधान है। अगहन माह का यह रोहिणी व्रत जैन को मानने वाले धर्मावलंबियों के लिए शुभ फलदायी माना जाता है।
रोहिणी व्रत का संबंध रोहिणी नक्षत्र से है, जो चंद्रमा से जुड़ा हुआ है। यह नक्षत्र हर महीने आता है और जब यह सूर्योदय के बाद तक रहता है, तब रोहिणी व्रत किया जाता है। यह व्रत जैन और हिंदू धर्म दोनों में बहुत शुभ माना गया है।
रोहिणी व्रत मुख्य रूप से महिलाओं का व्रत माना जाता है। जिसमें उपवास रहकर महिलाएं व्रत का संकल्प करती है और परिवार व संतान की खुशहाली व लंबी आयु की कामना करती है। इस दिन महिलाएं निर्जला या फलाहार व्रत रहकर सुख-समृद्धि और संतान की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती है।
कितने सालों तक व्रत करने का है विधान?
जैन धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है। जैन मान्यताओं में रोहिणी व्रत करके व्यक्ति कर्म व बंधन से मुक्ति पा लेता है और मोक्ष की प्राप्ति के रास्ते कुल जाते हैं। लगातार 3, 5, या 7 साल तक रोहिणी व्रत किए जाने का नियम है। इसके अलावा नियम है कि पारण अनुष्ठान के बाद ही इस व्रत को पूर्ण माना जाएगा और तभी व्रत का पूरा फल प्राप्त होगा।
रोहिणी व्रत की पूजा विधि-
ब्रह्म मुहूर्त में जागकर पानी में गंगाजल डालें और स्नान करें।आचमन कर व्रत का संकल्प करें और सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। अब पूजाघर की साफ सफाई करें और वेदी सजाएं। भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा को वेदी पर स्थापित करें।
पूजा में भगवान वासुपूज्य को फल-फूल अर्पित करें। अब गंध, दूर्वा, नैवेद्य भगवान को चढ़ाएं।
सूर्यास्त होने से पहले फिर पूजा करें और हल्का फलाहार करें। अगले दिन पूजा अर्चना करें व व्रत का पारण कर गरीबों में दान करें।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जहां सुहागिन महिलाओं को रोहिणी व्रत करने से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है, वहीं इस व्रत से साधक के सभी दुख-दर्द भी दूर हो जाते हैं। जैन धर्म में यह भी माना गया है कि इस व्रत को करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। इसी के साथ आत्मा की शुद्धि के लिए भी यह व्रत काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।


















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