*लक्ष्मी महंत बलौदा जिला जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़*
--छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार भोजली मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया। मित्रता, आदर और विश्वास के इस प्रतीक पर्व पर शाम को छत्तीसगढ़ के गांवों और शहरों में भोजली त्यौहार का रंग दिखा। जब नदी और तालाबों में छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं सिर पर भोजली लेकर विसर्जन के लिए लोकगीत गाते हुए निकली। त्योहारों के प्रदेश छत्तीसगढ़ का ये पहला ऐसा त्यौहार है, जो पूरे विश्व में सिर्फ अपने अंतिम दिन यानि विसर्जन के दिन के लिए प्रसिद्ध है।
यहीं कामना करती है महिलायें इस गीत के माध्यम से। इसीलिये भोजली देवी को अर्थात प्रकृति के पूजा करती है। छत्तीसगढ़ में महिलायें धान, गेहूँ, जौ या उड़द के थोड़े दाने को एक टोकनी में बोती है। उस टोकनी में खाद मिट्टी पहले रखती है। उसके बाद सावन शुक्ल नवमीं को बो देती है। जब पौधे उगते है, उसे भोजली देवी कहा जाता है।
*रक्षाबंधन के अगले दिन मनाया जाता है ये त्यौहार*
रक्षा बन्धन के बाद भोजली को ले जाते हैं नदी में और वहाँ उसका विसर्जन करते हैं। अगर नदी आसपास नहीं है तो किसी नाले में या तालाब में, भोजली को बहा देते हैं। इस प्रथा को कहते हैं - भोजली ठण्डा करना। भोजली के पास बैठकर बधुयें जो गीता गाती हैं, उनमें से एक गीत यह है - जिसमें गंगा देवी को सम्बोधित करती हुई गाती है - देवी गंगा ...देवी गंगा लहर तुरंगा
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