अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
काठमांडू - पूर्वाम्नाय गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने तुडीखेल मैदान , काठमांडू नेपाल में अपने स्पष्ट एवं सारगर्भित प्रवचन में कहा - भारत के पूर्व प्रधानमंत्रीजी , वर्तमान प्रधानमंत्री जी , भारत के पूर्व राष्ट्रपति जी , वर्तमान राष्ट्रपति जी भी कान खोल कर सुन लें। विश्व में स्वस्थ क्रांति की उद्भावना नेपाल से होगी और वह स्वस्थ क्रांति सबके हित में प्रयुक्त और विनिर्युक्त होगी। अगर सनातन वैदिक आर्य हिंदू धर्म अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो तो किसी अन्य तंत्र की आवश्यकता नहीं रह जाती है।
(प्रस्तुतकर्ता - अवधेश नंदन श्रीवास्तव)
पुरी शंकराचार्य श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज राष्ट्रोत्कर्ष अभियान में भारत के साथ ही नेपाल प्रवास पर रहते हैं। ऐसी ही अवसर पर नेपाल में सभा को संबोधित करते हुये सनातन वैदिक आर्य धर्म की सर्वकालीन सर्वोत्कृष्टता एवं प्रासंगिकता के संबंध में उन्होंने संकेत करते हुये कहा कि विश्व में स्वस्थ क्रांति की उद्भावना नेपाल से होगी और वह स्वस्थ क्रांति सबके हित में प्रयुक्त और विनिर्युक्त होगी। उन्होंने दो वाक्य में कहा कि अगर सनातन वैदिक आर्य हिंदू धर्म अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो तो किसी अन्य तंत्र की आवश्यकता नहीं रह जाती है। महाराजश्री ने एक उदाहरण देते हुये कहा कि कान खोलकर चीन सुन ले , कान खोल कर रूस सुन ले , कान खोल कर अमेरिका सुन ले , कान खोलकर इंग्लैंड सुन ले। देवर्षि नारद ने श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध के अनुसार युधिष्ठिर को उपदेश देते हुये कहा है कि जिससे तन ढक जाये , पेट भर जाये , देव कार्य - पितृ कार्य - ऋषि कार्य का संपादन हो जाये , अतिथि का सम्मान हो जाये , उससे अधिक संपत्ति पर यदि कोई अपना अधिकार जमाता है तब सनातन धर्म का सिद्धांत है कि वह चोर है , वह दंड का पात्र है। मैं यह पूछना चाहता हूं कि इस सिद्धांत के आगे कम्युनिज्म टिक कैसे सकता है ? हमारे धर्म के अनुपालन में जो अपराध हुआ उसके फलस्वरूप कम्युनिज्म का प्रादुर्भाव हुआ। विदुर जी ने धृतराष्ट्र को कहा है कि दो प्रकार के व्यक्तियों के लिये दंडाधिकारी का कर्तव्य है कि उन व्यक्तियों को दंड दे। धनी होता हुआ भी जो अपने धन का उपयोग अन्य के हित में, अन्य को स्वावलंबी बनाने में नहीं करता , केवल स्वयं को उसका उपभोक्ता बनाता है वह भी दंडाधिकारी के द्वारा दंड पाने योग्य है और जो दाने दाने के लिये मोहताज हो कर भी , गरीब होकर भी , स्वस्थ शरीर रहने पर भी उद्योग परायण नहीं है , दुर्व्यसनी है , ऐसा निर्धन भी दंड प्राप्त करने का अधिकारी है।दंडाधिकारी का कर्तव्य है उसके गले में वजनदार गुरुत्वपूर्ण भारी पत्थर मजबूत रस्सी से बांधकर जलाशय में डुबो देना चाहिये। जब तक यह सिद्धांत हमारे यहां क्रियान्वित था तब तक रूस की आवश्यकता नहीं थी , चीन की आवश्यकता नहीं थी। पुरी शंकराचार्य जी ने कहा मैं एक संकेत करना चाहता हूं सनातन वैदिक हिंदू धर्म वह है जहां हर व्यक्ति की जीविका जन्म से आरक्षित है , आर्थिक विपन्नता आर्थिक विषमता जहां संभव ही नहीं है उसका नाम सनातन वैदिक आर्य धर्म है। अगर कोई सनातन वैदिक आर्य धर्म को स्वीकार नहीं करता है तो उसका दोष नहीं है दोष हमारा है। उसके हृदय में हमने दार्शनिक , वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातल पर सनातन धर्म के महत्व को स्थापित नहीं किया है। विश्व में जितनी भी विसंगतियां हैं , किसी भी देश के किसी भी शासन को मैं पुरी के शंकराचार्य के पद से दोष नहीं देता बल्कि सारा दोष अपने ऊपर लेता हूं। यदि हमने प्रमाद का परिचय ना दिया होता , यदि हमने सनातन वैदिक आर्य सिद्धांतों को दार्शनिक , वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातल पर विश्व स्तर पर स्थापित किया होता तो सारा तंत्र हमारा होता , सारा विश्व हमारा होता और हम सबके होते। भव्य नेपाल की संरचना- नेपाल भव्य रूप धारण करेगा , भारत इससे शिक्षा लेगा।
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