परिवार- कहां से ये नया_ नया डे आ जाता है।
कभी माता_पिता कभी बेटी,बेटा डे आता है।।
कभी लवर डे तो कभी बेस्ट फ्रेंडशीप डे।
इनके मनाने से न कोई आता है न जाता है।।
बस आज फलाना डे है फिर देते रहो बधाई।
उस डे के आने से क्या फर्क पड़ता है भाई।।
आप कभी जाकर देखो तो उन घरों को भी।
मोबाइल, व्हाट्सएप,फेश बुक ने परंपरा चलाई।।
परिवार तो पहले हुआ करता था मेरे भाई।
जहाँ एक दूजे के लिए स्वयं जान तक गंवाई।।
आज तो न जाने कहां अपना परिवार होता है।
परिवार की परिभाषा पूर्वजों ने थी बनाई।।
अब हम दो, हमारे दो बाकी को भूल जाने दो।
भारत जैसे देश में वृद्धाश्रम बन जाने दो।।
पति पत्नी दोनों करे नौकरी फिर भी देखों।
आर्थिक तंगी है मां बाप को घर से जाने दो।।
न तो आज कोई परिवार है न ही संस्कार है।
इसीलिए बच्चों का आज बुरा व्यवहार है।।
कल तुमने अपना मां बाप छोड़ा था भाई।
आज बच्चे छोड़ कर जा रहे तो क्या बेकार है।।
अपने ही कर्मों का फल तो सब भोग रहे हैं ।
ये सब गलत है तभी तो आपको टोक रहे हैं।।
परिवार तो हुआ करता था उस_ जमाने में।
जिनको भूलने भुलाने का अब रोग लग रहे हैं।।
क्या करोगे पैसे,नौकरी,तरक्की पा कर बताओ।
पहले तो हँस भी लेते थे अब हँस कर दिखाओ।।
जिनको तुमने भुला दिया है आज याद करते हैं।
अब तो वापस परिवार में लौट कर आ जाओ।।
तुलेश्वर कुमार सेन
सलोनी राजनांदगांव
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