रतनपुर से ताहिर अली की रिपोट
रतनपुर....अपनी संस्कृति और परंपरा का निर्वाह किस तरह से किया जाता है इसकी एक बानगी देखने को मिलती है नगर के प्रसिद्ध पंढरीनाथ मंदिर में,विगत 352 वर्षों से अनवर अपनी परंपरा को जीवंत बनाए रखते हुए भगवान पंढरीनाथ का महोत्सव हर्षोल्लास एवं परंपरा अनुसार मनाया जाता है शरद पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाले वाला काकड़ा आरती का समापन कार्तिक पूर्णिमा को किया जाता है मंदिर के वर्तमान व्यवस्थापक पंडित आनंद नगरकर जी ने बताया की सन् 1666 मे महाराष्ट्र के चंद्रभागा नदी से विट्ठलनाथ और रूखमाई की मूर्ति लेकर काशीकर महाराज रतनपुर में पधारे और यहां इस स्थल को अपना तपोस्थली बनाया,छत्रपति शिवाजी महराज के काल मे भगवान विट्ठलनाथ की मंदिर की स्थापना की गई और तब से लेकर आज तक नगरकर परिवार ही मंदिर की पूजा और व्यवस्था संभाल रहे है, और प्रतिवर्ष कार्तिक एवं आषाढ मास को भगवान विट्ठलनाथ का उत्सव भी उसी परंपरा अनुसार मनाया जाता है, अष्टमी एवं नवमी तिथि को काशीकर महाराज जी नगर भ्रमण करते हुए लोगों को जन जागरूकता का संदेश देते थे,झोली में प्राप्त अन्न से भंडारे करके समाजिक समरसता की नीवं भी उन्होंने ही स्थापित की एकादशी को नगर में दिंडी यात्रा का चलन भी उन्होंने ही प्रारंभ किया जहां आषाढ़ मास की एकादशी को मंदिरों में जाकर के भगवान को शयन कराया जाता है, वही कार्तिक एकादशी को मंदिरों में जाकर के भगवान को उठाया जाता है
यह अलौकिक परंपरा विगत 352 वर्षों से निरंतर चलते आ रही है,वर्तमान में काशी कर महाराज का करताल वीणा पगड़ी खड़ाऊ पहनकर के पंडित आशीष नगरकर जी नगर भ्रमण को निकलते हैं जहां नगरवासी अपने द्वार में आरती सजाकर के नारद जी का स्वागत एवं पूजन करते हैं इस मंदिर की सबसे प्रमुख खासियत यह है कि महाराष्ट्रीयन परिवार द्वारा संचालित नगर का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां की महाराष्ट्रीयन पद्धति की सारी परंपराएं छत्तीसगढ़ के वासी ही संपन्न करते हैं निरंतर 1 माह तक प्रातः भगवान पंढरीनाथ का काकड़ा आरती किया जाता है जिसमें नगर के सभी रहवासी उल्लास के साथ भाग लेते हैं काकड़ा आरती का नाम शायद इसलिए भी पढ़ा होगा कि क्योंकि यह जो बत्ती होती है उसे धोती से अर्थात कपड़े से बनाई जाती है इसलिए इसका नाम काकड़ा आरती पड़ा जब लोग एक दूसरे के हाथ में यह काकड़ा लेकर के आपस में प्रज्वलित करते हैं तो ऐसा लगता मानो ज्योति से ज्योति जलाते चलो की भावना निखर रही हो,और पूरी प्रकृति इंद्रधनुषी रंगो सराबोर हो गई हो,ईस वर्ष भी शरद पूर्णिमा से काकड़ा आरती की धूम मची हुई है,3 नवंबर को भगवान पंढरीनाथ के उत्सव का घट स्थापना व पंचपदी पूजन का कार्यक्रम किया जाएगा,4 नवंबर को पारंपरिक दिंडी यात्रा दोपहर 3:00 से नगर भ्रमण के लिए प्रारंभ होगी, 5 नवंबर से 7 नवंबर तक नवीमुंबई से पधारे कीर्तनकार हरी भक्त परायण राजेंद्र पांडुरंग का कीर्तन एवं प्रवचन होगा, 8 नवंबर को 1 माह से चली आ रही काकड़ा आरती का विश्राम प्रातः काल में होगा,एवं 9 नवंबर को भगवान विट्ठलनाथ का गोपालकाला का कार्यक्रम संपन्न होगा 13 नवंबर को पंचपदी व काढ़ा प्रसाद के साथ ही भगवान विट्ठल नाथ का कार्तिक महोत्सव उल्लास के साथ संपन्न किया जाएगा
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