अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर - देश में यदि महिलाओं को गरिमापूर्ण स्थान समाज में दिया है , तो वो मात्र देश का संविधान ही है। देश का संविधान ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमे महिला एवं पुरुष में किसी प्रकार का भेद नहीं किया गया है। हमारे देश का जितना नुकसान लैंगिक भेदभाव ने किया है , शायद ही किसी और कारण ने किया हो। जिस दिन हमारे देश की हर महिला शक्ति भारत के संविधान को सुबह-शाम पढ़ना शुरू कर देगी , उस दिन से उसे सभी प्रकार के शोषण से मुक्ति का रास्ता मिल जायेगा एवं उसे आगे बढ़ने और देश के निर्माण की भागीदारी से कोई नहीं रोक पायेगा।
उक्त बातें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एवं राज्य पुलिस अकादमी चंदखुरी के निदेशक रतन लाल डांगी ने आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर पं० रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में विधि संकाय के छात्रों को संबोधित करते हुये कही। उन्होंने
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समस्त महिला शक्ति को बधाई एवं प्रणाम निवेदित करते हुये कहा कि
हर व्यक्ति को अपने आपसे ये सवाल जरूर पूछना चाहिये किआखिर महिला दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? क्या महिला के बिना इस मानव जाति का अस्तित्व संभव है ? जिस महिला शक्ति के बिना मानव जाति की कल्पना नहीं की जा सकती वह महिला शक्ति सदियों से अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रही है और हर युग में उसके साथ छल ही हुआ है , छल भी उसके अपनों ने ही किया है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक महिलाओं की स्थिति में उतार-चढ़ाव रहा है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी हद तक ठीक थी लेकिन उत्तर वैदिक काल से ही उनकी समाज में स्थिति उत्तरोत्तर खराब ही होती गई , स्त्री को शूद्र की कैटेगरी में रखा गया। उनको भी शूद्रों की तरह ना तो शिक्षा का अधिकार था और ना हीं सामाजिक व्यवस्था में सम्मान। उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता था। मनुस्मृति में महिलाओं के लिये बहुत निम्न किस्म की शब्दावली का प्रयोग किया गया है एवं स्त्री को पुरुष की दासी के रूप में स्थापित किया गया है। आईपीएस डांगी ने कहा लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक , सामाजिक , आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है , जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुये संविधान निर्माताओं ने विशेषकर डॉ० भीमराव अंबेडकर ने लैंगिग भेदभाव को संविधान में कहीं पर भी स्थान नहीं दिया है। उनका कहना भी था कि "मैं किसी समुदाय की प्रगति उस समुदाय की महिलाओं की प्रगति के आधार पर मापता हूं।” इसीलिये संविधान में लिंग भेद का कोई स्थान नहीं है। यानि महिलाओं को भी वो सब अधिकार दिये है जो पुरुषों को दिये। संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का ही कमाल है की आज हर क्षेत्र में महिला शक्ति ने अपना लोहा मनवाया है। उनका कहना है कि महिलायें चाहे वो देश की राष्ट्रपति हो , प्रधानमंत्री , राज्यपाल , मुख्यमंत्री , मंत्री , न्यायाधीश , आईएएस , आईपीएस , वैज्ञानिक , डॉक्टर , अंतरिक्ष , सेना ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां महिलाओं ने संविधान द्वारा दिये अधिकारों से प्राप्त अवसर मिलने से यह साबित कर दिया कि कोई भी व्यक्ति किसी से कम नहीं होता है , वो सब कर सकता है यदि उसे अवसर दिया जाये। कहा भी गया है की यदि किसी देश को विकसित करना है तो लोगों को जगाना होगा और “लोगों को जगाने के लिये , महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है तो परिवार आगे बढ़ता है , गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है।“ भारत में , महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को क्षति पहुंचाने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा , अशिक्षा , यौन हिंसा , असमानता , भ्रूण हत्या , महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा , बलात्कार , वैश्यावृत्ति , मानव तस्करी और भी ऐसे ही दूसरे विषय। इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये एवं भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है। लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से ही पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारित करना होगा। केवल शिक्षित व्यक्ति ही अपने अधिकारों को जान सकता है इसलिये यह जरूरी है की हर बेटी को पढ़ने का मौका समाज को देना होगा। मजबूत समाज एवं राष्ट्र के लिये ये जरुरी है कि महिलायें शारीरिक , मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है , महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा , असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह हो जाता है और बच्चे भी जिससे महिलाओं के शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार , लैंगिक भेदभाव , सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम भी उठा रही है। फिर भी अभी बहुत किया जाना अपेक्षित है l



















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