संस्कार दिए बिना सुविधाए देना पतन का कारण है - - आचार्य नंदकुमार शर्मा
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अजय नेताम - रिपोर्टर
तिल्दा नेवरा - - समीपस्थ ग्राम मोहरा मे चल रही है तीसरे दिन रविवार को भागवत भूषण आचार्य पंडित नंदकुमार शर्मा जी निनवा वाले ने भागवत कथा के माध्यम से कहा कि आज के परिवेश और परिस्थितियों को देखते हुए अपनी सन्तान को अच्छा संस्कार और अच्छी परवरिश देना अत्यंत आवश्यक है. सबसे बड़ा धनवान वहीं माता पिता है जिनकी सन्तान सुयोग्य और संस्कारी है.
उन्होंने कहा कि सन्तान को सुविधाएं देने के साथ साथ संस्कार देना भी आवश्यक है आचार्य जी ने राजा बेन की कथा मे बताया कि राजा अंग का पुत्र बेन हुआ जो चार साल की उम्र ही बड़ा अत्याचारी और दुराचारी बन गया है. एकलौता पुत्र जानकर राजा अंग अपने पुत्र बेन को अधिक प्रेम प्यार देने लगा लेकिन संस्कार नहीं दे पाए जिसके कारण बेन बड़ा ही अत्याचारी हो गया. संतों के अपमान करने के कारण संतों ने उन्हें श्राप देकर मृत्यु दंड दे दिया. आचार्य श्री ने कहा कि संस्कार देने से सन्तान मे अच्छे गुणो का विकास होता है. अनुशासन और ज़िम्मेदारी की भावना का विकास होता है. उन्होंने कहा कि सन्तान को संस्कार दिए बिना सुविधा देना पतन का कारण है. संस्कार और सुविधाए दोनों ही जीवन के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन इनके बीच एक संतुलन का होना भी जरूरी है. यदि हम अपने बच्चों को केवल सुविधाएं देते है तो वे जीवन मे असफल हो सकते है परंतु बच्चों को अच्छे संस्कार देते है तो वे जीवन के हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहेंगे. आगे आचार्य जी ने अजामिल की कथा मे बताया मे कि अजामिल ब्राह्मण कुसंगति मे आकर मदिरा पान करके अपने जीवन को बर्बाद कर दिया.. अनेक प्रकार के पाप कर्म और दुष्कर्म मे लिप्त होता गया. आचार्य शर्मा ने कहा कि मदिरा व्यक्ति के जीवन को नरक बना देती है. मदिरा के कारण व्यक्ति का धन, दौलत शरीर, मान सम्मान और चरित्र सब कुछ चला जाता है. इसीलिए मनुष्य को मदिरा का सेवन कभी नहीं करना चाहिए. अजामिल ब्राह्मण मरने के समय एक बार नारायण नाम लिया और भव सागर से पार हो गया.. उन्होंने बताया जो जीव मरण काल मे एक बार भगवान के किसी भी नाम का उच्चारण करता है तो वह पापी से पापी व्यक्ति भी सीधे भवसागर से पार होकर परम गति को प्राप्त कर लेता.. आचार्य शर्मा ने कहा कि माता पिता का कर्तव्य होना चाहिए कि अपने बच्चों का नाम देवी देवताओं के नाम पर रखे.. व्यक्ति जैसी संगति में बैठता है, जैसे लोगों से मित्रता करता है, वह भी वैसा ही बन जाता है। अच्छे व्यक्ति की संगति पारस मणि की भाँति होती है,यदि व्यक्ति स्वार्थ की भावना को त्याग कर हमेशा परमार्थ भाव से जीवन यापन करे तो निश्चित रूप से वह एक अच्छा इंसान है। परमार्थ की भावना ही व्यक्ति को महान बनाती है। व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्याग करके विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का आह्वान किया. अपने विचारों पर पैनी नजर रखते हुए बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीतते हुए अपने मानव जीवन को सुखमय एवं आनंद मय बनाना चाहिए। मानव जीवन सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। भगवान की कृपा होने पर ही मानव जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य अपने कर्म फल को श्रेष्ठ बनाकर देवता भी बन सकता है। आचार्य जी ने कहा कि जब मनुष्य जीवन मे स्वार्थ आता है तो वह केवल अपने लाभ और स्वार्थ पूर्ति के बारे मे ही सोचता है. दूसरे को हानि पहुचा कर भी स्वार्थ पूरा करने मे लगा रहता है. । कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की अपार भीड़ बढ़ती जा रही है
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